28-02-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

‘‘प्राण अव्यक्त बापदादा द्वारा झण्डारोहण’’

आज 48वीं त्रिमूर्ति शिव जयन्ती के उपलक्ष्य में ओम् शान्ति भवन की स्टेज पर खड़े होकर स्वयं मीठे बाबुल ने झण्डा लहराया तथा सभी बच्चों के प्रति मधुर सन्देश में कहा-

बाप कहते हैं बच्चों का झण्डा सदा महान है। बच्चे नहीं होते तो बाप भी क्या करते! आप कहते हैं बाप का झण्डा सदा महान... (गीत बज रहा था) और बाप कहते हैं बच्चों का झण्डा सदा महान। सदा सभी बच्चों के मस्तक पर विजय का झण्डा लहरा रहा है। सबके नयनों में, सबके मस्तक में विजय का झण्डा लहराया हुआ है। बापदादा देख रहे हैं - एक यह झण्डा नहीं लहराया लेकिन सबके मस्तक में साथ-साथ विजय का झण्डा अविनाशी लहराया हुआ है।

बाप और बच्चों के वन्डरफुल बर्थ डे की मुबारक

चारों ओर के अति स्नेही, सेवा के साथी, सदा कदम में कदम रखने वाले बच्चों को इस अलौकिक ब्राह्मण जीवन की, बर्थ डे की मुबारक हो। सदा सभी बच्चों को बापदादा यादप्यार और मुबारक की रिटर्न में स्नेह भरी बाँहों की माला पहनाते हुए मुबारक दे रहे हैं। सभी बच्चों को यह अलौकिक बर्थ-डे विश्व की हर आत्मा यादगार रूप में मनाती ही आती है क्योंकि बाप के साथ बच्चों ने भी ब्राह्मण जीवन में सर्व आत्माओं को बहुत,बहुत, बहुत सुख-शान्ति, खुशी और शक्ति का सहयोग दिया है। इस सहयोग के कारण सब दिल से शिव और शालिग्राम दोनों का बर्थ-डे शिव जयन्ती मनाते हैं। तो ऐसे शालिग्राम बच्चों को शिव बाप और ब्रह्मा बाप दोनों की सदा पद्मगुणा बधाईयाँ हों, बधाईयाँ हों। सदा बधाई हो, सदा वृद्धि हो और सदा विधिपूर्वक सिद्धि को प्राप्त हो। अच्छा- सभी को गुडमोर्निंग।’’

अव्यक्त महावाक्य

आज भोलनाथ बाप अपने भोले बच्चों से बच्चो का सो बाप का सो बच्चों का अवतरण दिवस अर्थात् अलौकिक रूहानी जयन्ती मनाने आये हैं। भोलनाथ बाप को सबसे प्रिय भोले बच्चे हैं। भोले अर्थात् जो सदा सरल स्वभाव, शुभ भाव और स्वच्छता सम्पन्न मन और कर्म दोनों में सच्चाई और सफाई, ऐसे भोले बच्चे भोलानाथ बाप को भी अपने ऊपर आकर्षित करते हैं। भोलानाथ बाप ऐसे सरल स्वभाव भोले बच्चों के गुणों की माला सदा ही सिमरण करते रहते हैं। आप सभी ने अनेक जन्मों में बाप के नाम की माला सिमरण की और बाप अभी संगमयुग पर बच्चों को रिटर्न दे रहे हैं। बच्चों की गुण माला सिमरण करते हैं। कितने भोले बच्चे भोलानाथ को प्यारे हैं। जितना ज्ञानस्वरूप, नॉलेजफुल, पावरफुल उतना ही भोलापन। भगवान को भोलापन प्यारा है। ऐसे अपने श्रेष्ठ भाग्य को जानते हो ना। जो भगवान को मोह लिया। अपना बना दिया।

आज भक्तों और बच्चों दोनों का विशेष मनाने का दिन है। भक्त तैयारियां कर रहे हैं, आह्वान कर रहे हैं और आप सम्मुख बैठे हो। भक्तों की लीला भी बाप देख-देख मुस्कराते हैं और बच्चों की मिलन लीला देख-देख हर्षाते हैं। एक तरफ वियोगी भक्त आत्मायें, दूसरे तरफ सहज योगी बच्चे। दोनों ही अपनी- अपनी लगन से प्रिय हैं। भक्त भी कोई कम नहीं हैं। कल के दिन आकारी इष्ट रूप में चक्र लगाकर देखना। बाप के साथ शालिग्राम बच्चों की भी विशेष रूप से पूजा होगी। अपना पूजन बाप के साथ भक्तों का देखना। अभी अन्त तक भी नौधा भक्त कोई-कोई हैं जो सच्चे स्नेह से भक्ति कर भक्ति की भावना का अल्प समय का फल अनुभव करते हैं। कल का दिन भक्तों के भक्ति की विशेष लगन का दिन है। समझा!

आप सभी बाप की जयन्ती मनायेंगे या अपनी? सारे कल्प में बाप और बच्चों का एक ही बर्थ-डे हो - यह हो सकता है? भल दिन वो ही हो, वर्ष वह नहीं हो सकता। बाप और बच्चे का अन्तर तो होगा ना। लेकिन अलौकिक जयन्ती बाप और बच्चों की साथ-साथ है। आप कहेंगे हम बाप का बर्थ डे मनाते हैं और बाप कहते - बच्चों का बर्थ डे मनाते हैं। तो वण्डरफुल बर्थ-डे हो गया ना! अपना भी मनाते बाप का भी मनाते। इससे ही सोचों कि भोलनाथ बाप का बच्चों के साथ कितना स्नेह हैं जो जन्म दिन भी एक ही है। तो इतना मोह लिया ना - भोलनाथ को। भक्त लोग अपने भक्ति की मस्ती में मस्त हो जाते हैं और आप ‘‘पा लिया’’ इसी खुशी में साथ-साथ मनाते गाते नाचते हो। यादगार जो बनाया है उसमें ही बहुत रहस्य समाया हुआ है।

पूजा में, चित्रों में दो विशेषतायें विशेष हैं। एक तो है बिन्दू की विशेषता और दूसरी है - बूँद-बूँद की विशेषता। पूजा की विधि में बूँद-बूँद का महत्व है। इस समय आप बच्चे ‘बिन्दू’ के रहस्य में स्थित होते हो। विशेष सारे ज्ञान का सार एक बिन्दू शब्द में समाया हुआ है। बाप भी बिन्दू, आप आत्मायें भी बिन्दू और ड्रामा का ज्ञान धारण करने के लिए जो हुआ - फिनिश अर्थात् फुलस्टाप। बिन्दू लगा दिया। परम आत्मा, आत्मा और यह प्रकृति का खेल अर्थात् ड्रामा तीनों का ज्ञान प्रैक्टिकल लाइफ में ‘बिन्दू’ ही अनुभव करते हो ना। इसलिए भक्ति में भी प्रतिभा के बीच बिन्दू का महत्व है। दूसरा है - बूँद का महत्व- आप सभी याद में बैठते हो या किसी को भी याद में बिठाते हो तो किस विधि से कराते हो? संकल्पों की बूँदों द्वारा - मैं आत्मा हूँ, यह बूँद डाली। बाप का बच्चा हूँ - यह दूसरी बूँद। ऐसे शुद्ध संकल्प की बूँद द्वारा मिलन की सिद्धि को अनुभव करते हो ना। तो एक है शुद्ध संकल्पों की स्मृति की बूँद। दूसरा जब रूह-रूहान करते हो, बाप की एक-एक महिमा और प्राप्ति के शुद्ध संकल्प की बूँद डालते हो ना। आप ऐसे हो, आपने हमको यह बनाया। यही मीठी-मीठी शीतल बूँदे बाप के ऊपर डालते अर्थात् बाप से रूह-रूहान करते हो। एक-एक बात करके सोचते हो ना, इकट्ठा ही नहीं। तीसरी बात - सभी बच्चे अपने तनमन- धन से सहयोग की बूँद डालते। इसलिए आप लोग विशेष कहते हो - फुरी फुरी तालाब। इतना बड़ा विश्व-परिवर्तन का कार्य, सर्वशक्तिवान का बेहद का विशाल कार्य उसमें आप हरेक जो भी सहयोग देते हो, बूँद समान ही तो सहयोग है। लेकिन सभी की बूँद-बूँद के सहयोग से, सहयोग का विशाल सागर बन जाता है। इसलिए पूजा की विधि में भी बूँद का महत्व दिखाया है।

विशेष व्रत की विधि दिखाते हैं। व्रत लेते हो ना। आप सभी बाप के सहयोगी बनने में व्यर्थ संकल्प के भोजन का व्रत लेते हो कि कभी भी बुद्धि में अशुद्ध व्यर्थ संकल्प स्वीकार नहीं करेंगे। यह व्रत अर्थात् दृढ़ संकल्प लेते हो और भक्त लोग अशुद्ध भोजन का व्रत रखते हैं। और साथ-साथ आप सदा के लिए जागती ज्योति बन जाते हो और वह उसके याद स्वरूप में जागरण करते हैं। आप बच्चों के अविनाशी रूहानी अन्तर्मुखी विधियों को भक्तों ने स्थूल बाहरमुखी विधियाँ बना दी हैं। लेकिन कापी आप लोगों को ही की है। जो कुछ टच हुआ, रजोप्रधान बुद्धि होने कारण ऐसे ही विधि बना दी। वैसे रजोगुणी नम्बरवन भक्त और भक्ति के हिसाब से सतोगुणी भक्त, तो ब्रह्मा और आप सभी विशेष आत्मायें निमित्त बनते हो। लेकिन पहले मंसा स्नेह और मंसा शक्ति होने के कारण मानसिक भाव की भक्ति शुरू होती है। यह स्थूल विधियाँ पीछेपीछे धीरे-धीरे ज्यादा होती है। फिर भी रचयिता बाप अपने भक्त आत्मायें रचना को और उन्हों की विधियों को देख यही कहेंगे कि इन भक्तों के टचिंग की बुद्धि की भी कमाल है। फिर भी इन विधियों द्वारा बुद्धि को बिजी रखने से, विकारों में जाने से कुछ न कुछ किनारा तो किया ना। समझा- आपके यथार्थ सिद्धि की विधि भक्ति में क्या-क्या चलती आ रही है।यह है यादगार का महत्व।

डबल विदेशी बच्चे तो भक्ति देखने से किनारे में रहते हैं। लेकिन आप सबके भक्त हैं। तो भक्तों की लीला आप पूज्य आत्माओं को समझ्नी तो पड़ेंगी ना। डबल विदेशी बच्चे अनुभव करते हो कि हम पूज्य आत्माओं को अभी भी भक्त आत्मायें कैसे पूजन भी कर रही हैं और आह्वान भी कर रही हैं। ऐसे महसूस करते हो ? कभी अनुभव होता है - भक्तों की पुकार का। रहम आता है भक्तों पर। भक्तों का ज्ञान भी अच्छी तरह से है ना! भक्त पुकारें और आप समझो नहीं तो भक्तों का क्या होगा? इसलिए भक्त क्या हैं, पुजारी क्या हैं, पूज्य क्या है इस राज़ को भी अच्छी तरह से जानते हो। पूज्य और पुजारी के राज़ को जानते हो ना। अच्छा। कभी भक्तों की पुकार का अनुभव होता है? पाण्डवों को भी होता है वा सिर्फ शक्तियों को होता है। शालिग्राम तो ढेर होते हैं। लाखों की अन्दाज में। लेकिन देवतायें लाखों की अन्दाज में नहीं होते। चाहे देवियाँ वा देवतायें हजारों की अन्दाज में होंगे। लाखों की अन्दाज में नहीं होगा। अच्छा- इनका राज़ भी फिर कभी सुनायेंगे।

डबल विदेशियों में भी जो आदि में आये हैं, ज्यादा में ज्यादा कितने वर्ष हुए? नौ-दस वर्ष। तो जो शुरू में एग्जैम्पल बने हैं चाहे शक्तियां अथवा पाण्डव। उन्हों की भी विशेषता है ना। बाप तो सबसे पहले बड़ा विदेशी है। सबसे ज्यादा समय विदेश में कौन रहता है? बाप रहता है ना।

अभी दिन प्रतिदिन जितना आगे समय आयेगा उतना भक्तों के आह्वान का आवाज़, उन्हों की भावनायें सब आपके पास स्पष्ट रूप में अनुभव होंगी। कौनसी इष्ट देवी वा देवता हो वो भी मालूम पड़ेगा। थोड़े पक्के हो जाओ फिर यह सब दिव्य बुद्धि की टचिंग द्वारा ऐसा अनुभव होगा जैसे दिव्य दृष्टि से स्पष्ट दिखाई देता है। अभी तो सज रहे हो इसलिए प्रत्यक्षता का पर्दा नहीं खुल रहा है। जब सज जायेंगे तब पर्दा खुलेगा। और स्वयं को भी देखेंगे। फिर सबके मुख से निकलेगा कि यह फलानी देवी भी आ गई। फलाना देवता भी आ गया। अच्छा-

सदा भोलेनाथ बाप के सरलचित, सहज स्वभाव वाले सहज योगी, भोले बच्चे, सदा बिन्दी और बूँद के रहस्य को जीवन में धारण करने वाले, धारणा स्वरूप आत्मायें, सदा मन, वाणी कर्म में दृढ़ संकल्प का व्रत लेने वाली ज्ञानी तू आत्मायें, सदा अपने पूज्य स्वरूप में स्थित रहने वाली पूज्य आत्माओं को भोलानाथ, वरदाता, विधाता बाप का यादप्यार और नमस्ते।’’